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Sunday 29 December 2013

"रिश्वत का चलन मिटायें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


अपना देश महान बनायें।
आओ नूतन वर्ष मनायें।।
 
मातम भी था और हर्ष था,
मिला-जुला ही गयावर्ष था,
भूल-चूक जो हमने की थीं,
उन्हें न फिर से हम दुहरायें। 
अपना देश महान बनायें।
आओ नूतन वर्ष मनायें।।
 
कभी न हो कोई दिन काला,
सूरज-चन्दा लाये उजाला,
छँटे कुहासा-हटे हताशा,
ग़म के बादल कभी न छायें। 
अपना देश महान बनायें।
आओ नूतन वर्ष मनायें।।
 
बन्द करें सब फिकरे-ताने,
देशभक्ति के गायें तराने,
फिल्में नहीं बने अब ऐसी,
जो कामुकता-भाव जगायें। 
अपना देश महान बनायें।
आओ नूतन वर्ष मनायें।।
 
शिक्षा का व्यापार बन्द हो,
सुमनों में भरपूर गन्ध हो,
कर्णधार सत्ता के मद में,
कभी न जनता को बिसरायें। 
अपना देश महान बनायें।
 आओ नूतन वर्ष मनायें।।

चमचे-गुण्डे और मवाली,
यहाँ न खाने पाये दलाली,
उनको ही मत देना अपना,
जो रिश्वत का चलन मिटायें। 
अपना देश महान बनायें।
आओ नूतन वर्ष मनायें।।

2 comments:

  1. नए संकल्पों का काव्य रच रहें हैं नव वर्ष वेला में शास्त्री जी -

    चमचे-गुण्डे और मवाली,
    यहाँ न खाने पाये दलाली,
    उनको ही मत देना अपना,
    जो रिश्वत का चलन मिटायें।
    अपना देश महान बनायें।
    आओ नूतन वर्ष मनायें।।

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