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Monday 31 December 2012

"सुबह हुई और शाम हई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

ग़म की रखवाली करते-करते ही उम्र तमाम हुई।
पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।।

सुख आये थे संग में रहने.
डाँट-डपट कर भगा दिया,
जाने अनजाने में हमने,
घर में ताला लगा लिया,
पवन-बसन्ती दरवाजों में, आने में नाकाम हुई।
पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।।

मन के सुमन चहकने में है,
अभी बहुत है देर पड़ी,
गुलशन महकाने को कलियाँ,
कोसों-मीलों दूर खड़ीं,
हठधर्मी के कारण सारी आशाएँ हलकान हुई।
पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।।

चाल-ढाल है वही पुरानी,
हम तो उसी हाल में हैं,
जैसे गये साल में थे,
वैसे ही नये साल में हैं,
गुमनामी के अंधियारों में, खुशहाली परवान हुई।
पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।।

Friday 23 November 2012

"काश! जानवरों सा जज्बा हमारे भीतर भी होता" (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


      सन् 1979, बनबसा जिला-नैनीताल का वाकया है। उन दिनों मेरा निवास वहीं पर था । मेरे घर के सामने रिजर्व कैनाल फौरेस्ट का साल का जंगल था। उन पर काले मुँह के लंगूर बहुत रहते थे। मैंने काले रंग का भोटिया नस्ल का कुत्ता पाला हुआ था। उसका नाम टॉमी था। जो मेरे परिवार का एक वफादार सदस्य था। मेरे घर के आस-पास सूअर अक्सर आ जाते थे। जिन्हें टॉमी खदेड़ दिया करता था । 
       एक दिन दोपहर में 2-3 सूअर उसे सामने के कैनाल के जंगल में दिखाई दिये। वह उन पर झपट पड़ा और उसने लपक कर एक सूअर का कान पकड़ लिया। सूअर काफी बड़ा और तगड़ा था । वह भागने लगा तो टॉमी उसके साथ घिसटने लगा। अब टॉमी ने सूअर का कान पकड़े-पकड़े अपने अगले पाँव साल के पेड़ में टिका लिए। 
      ऊपर साल के पेड़ पर बैठा लंगूर यह देख रहा था। उससे सूअर की यह दुर्दशा देखी नही जा रही थी । वह जल्दी से पेड़ से नीचे उतरा और उसने टॉमी को एक जोरदार चाँटा रसीद कर दिया और सूअर को कुत्ते से मुक्त करा दिया। हमारे भी आस-पास बहुत सी ऐसी घटनाएँ आये दिन घटती रहती हैं परन्तु हम उनसे आँखे चुरा लेते हैं और हमारी मानवता मर जाती है। 
     काश! जानवरों सा जज्बा हमारे भीतर भी होता।

Monday 12 November 2012

"तम मिटाने को, दिवाली आ गयी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

!! शुभ-दीपावली !!
 
तम अमावस का मिटाने को,
दिवाली आ गयी है।
दीपकों की रोशनी सबके,
दिलों को भा गयी है।।

जगमगाते खूबसूरत, 
लग रहे नन्हें दिये,
लग रहा जैसे सितारे ही, 
धरा पर आ गये,
झोंपड़ी महलों के जैसी,
मुस्कराहट पा गयी है।
दीपकों की रोशनी सबके,
दिलों को भा गयी है।।

भवन की दीवार को, 
बेनूर बारिश ने करा था,
गाँव के कच्चे घरों का, 
नूर भी इसने हरा था,
रंग-लेपन से सभी में,
अब सजावट छा गयी है।
दीपकों की रोशनी सबके,
दिलों को भा गयी है।।

छँट गया सारा अन्धेरा, 
पास का परिवेश का,
किन्तु अपनों ने किया, 
बदहाल भारत देश का,
प्यार जैसे शब्द को भी तो,
दिखावट खा गयी है।
दीपकों की रोशनी सबके,
दिलों को भा गयी है।।

Saturday 3 November 2012

"दीपक जलायें" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

!! शुभ-दीपावली !!
रोशनी का पर्व है, दीपक जलायें।
नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।।

बातियाँ नन्हें दियों की कह रहीं,
तन जलाकर वेदना को सह रहीं,
तम मिटाकर, हम उजाले को दिखायें।
नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।।

डूबते को एक तृण का है सहारा,
ज़िन्दगी को अन्न के कण ने उबारा,
धरा में धन-धान्य को फसलें उगायें।
नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।।

जेब में ज़र है नही तो क्या दिवाली,
मालखाना माल बिन होता है खाली,
किस तरह दावा उदर की वो बुझायें। 
नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।।

बाँटकर मिलकर सभी खाना मिठाई, 
दीप घर-घर में जलाना आज भाई,
रोज सब घर रोशनी में झिलमिलायें।
नीड़ को नव-ज्योतियों से जगमगायें।।

Monday 29 October 2012

"बुद्धि के प्रकार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


बुद्धि तीन प्रकार की होती है-
१- रबड़ बुद्धि
२- चमड़ा बुद्धि
३- तेलिया बुद्धि
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विचार कीजिए आप कौनसी बुद्धि के स्वामी हैं?

      रबड़ बुद्धि रबड़ की तरह होती है। उदाहरण के लिए आप रबड़ में एक सूई से सूराख कर दीजिए। सूई निकालते ही रबड़ अपने रूप में आ जाती है। सूराख किसी को दिखाई नहीं देता है। अर्थात् इस प्रकार की बुद्धि वाले व्यक्ति को कितना भी समझाइए। उसके कुछ भी पल्ले नहीं पड़ता है।
      चमड़ा बुद्धि वाले लोगों को जितना समझाओ उतना ही समझते हैं। जैसे चमड़े में सूराख करने से सूराख न तो फैलता है और न ही सिकुड़ता है।
      तेलिया बुद्धि- जैसे कि काग़ज पर एक बूंद तेल डालने से वह काफी दूर तक काग़ज पर फैल जाता है। इसी प्रकार तेलिया बुद्धि वाले लोगों को समझाने वाले का इशारा ही काफी होता है।

Monday 10 September 2012

"काला-कौआ होता मेहतर" बालकविता-डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'


कौआ बहुत सयाना होता।
कर्कश इसका गाना होता।।

पेड़ों की डाली पर रहता।
सर्दी, गर्मी, वर्षा सहता।।

कीड़े और मकोड़े खाता।
सूखी रोटी भी खा जाता।।

सड़े मांस पर यह ललचाता।
काँव-काँव स्वर में चिल्लाता।।

साफ सफाई करता बेहतर।
काला-कौआ होता मेहतर।।

Sunday 5 August 2012

"मधुर रक्त को, कौन राक्षस चाट रहा?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' का एक गीत)


आज देश में उथल-पुथल क्यों,
क्यों हैं भारतवासी आरत?
कहाँ खो गया रामराज्य,
और गाँधी के सपनों का भारत?

आओ मिलकर आज विचारें,
कैसी यह मजबूरी है?
शान्ति वाटिका के सुमनों के,
उर में कैसी दूरी है?

क्यों भारत में बन्धु-बन्धु के,
लहू का आज बना प्यासा?
कहाँ खो गयी कर्णधार की,
मधु रस में भीगी भाषा?

कहाँ गयी सोने की चिड़िया,
भरने दूषित-दूर उड़ाने?
कौन ले गया छीन हमारे,
अधरों की मीठी मुस्काने?

किसने हरण किया गान्धी का,
कहाँ गयी इन्दिरा प्यारी?
प्रजातन्त्र की नगरी की,
क्यों आज दुखी जनता सारी?

कौन राष्ट्र का हनन कर रहा,
माता के अंग काट रहा?
भारत माँ के मधुर रक्त को,
कौन राक्षस चाट रहा?

Saturday 4 August 2012

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' का एक गीत

भारत के बालक
हम भारत के भाग्य विधाता, नया राष्ट्र निर्माण करेंगे।
देश-प्रेम के लिए न्योछावर, हँस-हँस अपने प्राण करेंगे।।

गौतम, गाँधी, इन्दिरा जी की, हम ही तो तस्वीर हैं,
हम ही भावी कर्णधार हैं, हम भारत के वीर हैं,
भेद-भाव का भूत भगा कर, चारु राष्ट्र निर्माण करेंगे।
देश-प्रेम के लिए न्योछावर, हँस-हँस अपने प्राण करेंगे।।

चम्पा, गेन्दा, गुल-गुलाब ने, पुष्प-वाटिका महकाई,
हिन्द, मुस्लिम, सिख, ईसाई, आपस में भाई-भाई,
सब मिल-जुल कर आपस में, सुदृढ़ राष्ट्र निर्माण करेगे।
देश-प्रेम के लिए न्योछावर, हँस-हँस अपने प्राण करेंगे।।

भगतसिंह, अशफाक -उल्ला की, आन न हम मिटने देगे,
धर्म-मजहब की खातिर अपनी ,शान न हम मिटने देंगे,
कौमी -एकता को अपना कर धवल -राष्ट्र निर्माण करेंगे।
देश-प्रेम के लिए न्योछावर,हँस-हँस अपने प्राण करेंगे।।

दिशा-दिशा में, नगर-ग्राम में, बीज शान्ति के उपजायेंगे,
विश्व शान्ति की पहल करेंगे, राष्ट्र पताका लहरायेंगे,
भारत के सच्चे प्रहरी बन, स्वच्छ राष्ट्र निर्माण करेंगे ।
देश-प्रेम के लिए न्योछावर, हँस-हँस अपने प्राण करेंगे ।।

(डॉ० रूपचंद्र शास्त्री 'मयंक')

Friday 3 August 2012

डॉ. रूपचंद्र शास्त्री "मयंक" का बालगीत

"बादल तो बादल होते हैं"
श्वेत-श्याम से नभ में उगते,
निर्मल जल का सिन्धु समेटे,
लेकिन धुआँ-धुआँ होते हैं ।
बादल तो बादल होते हैं ।

बल के साथ गरजते रहते,
दल के साथ लरजते रहते,
जग में यहाँ-वहाँ होते हैं ।
बादल तो बादल होते हैं ।

चन्द्र,सूर्य का तेज घटाते,
इनसे तारागण ढक जाते,
बादल जहाँ-जहाँ होते हैं ।
बादल तो बादल होते हैं ।

Thursday 2 August 2012

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' का राखी गीत


आया राखी का त्यौहार!!
हरियाला सावन ले आयाये पावन उपहार।
अमर रहा हैअमर रहेगाराखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार!!

जितनी ममता होती है, माता की मृदु लोरी में,
उससे भी ज्यादा ममता है, राखी की डोरी में,
भरा हुआ कच्चे धागों में, भाई-बहन का प्यार।
अमर रहा हैअमर रहेगाराखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार!!

भाई को जा करके बाँधें, प्यारी-प्यारी राखी,
हर बहना की यह ही इच्छा राखी के दिन जागी,
उमड़ा है भगिनी के मन में श्रद्धा-प्रेम अपार!
अमर रहा हैअमर रहेगाराखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार!!

खेल-कूदकर जिस अँगने में, बीता प्यारा बचपन,
कैसे याद भुलाएँ उसकी, जो मोहक था जीवन,
कभी रूठते और कभी करते थे, आपस में मनुहार।
अमर रहा हैअमर रहेगाराखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार!!

गुज़रे पल की याद दिलाने, आई बहना तेरी,
रक्षा करना मेरे भइया, विपदाओं में मेरी,
दीर्घ आयु हो हर भाई की, ऐसा वर दे दो दातार।
अमर रहा हैअमर रहेगाराखी का त्यौहार।।
आया राखी का त्यौहार!! 

आज किसी भी भाई की, ना सूनी रहे कलाई, 
पहुँचा देना मेरी राखी, अरे डाकिए भाई, 
बहुत दुआएँ दूँगी तुझको, तेरा मानूँगी उपकार! 
अमर रहा है अमर रहेगा, राखी का त्यौहार!! 
आया राखी का त्यौहार!!